April 27, 2024

अपना गांव : बैजनाथ के सकड़ी गांव में आज भी मौजूद हैं प्राचीन नगाड़े और बाबड़ी

बैजनाथ (विकास बावा) : हिमाचल प्रदेश के सैकड़ों गांव जहां अपार प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब हैं वहीं ऐतिहासिकता के मायने में कई ऐसे गांव ऐसे हैं जो आज भी पौराणिक और ऐतिहासिक प्रासंगिकता को संजोये हुए हैं। इन्हीं में से जिला कांगड़ा के बैजनाथ से 5 किमी दूर सकड़ी गांव है। प्रख्यात अंग्रेजी साहित्यकार जॉर्ज फर्ग्यूसन द्वारा रचित दि कांगड़ा कटोच हिस्ट्री में वर्णित 13वीं सदी के गांव का पुराना नाम सप्तगिरि था और राजा हरि चंद कटोच की रियासत का मुख्यालय था। उसके बाद उनके पीढ़ीदर उत्तराधिकारी राजा ध्रुव चंद कटोच जयसिंहपुर के विजापुर चले गए थे। इनके पूर्वज लंबागांव के रियासतदानों के करीबी रहे हैं, जिनके कहने पर यहां आकर बसे थे और उन्हीं के कहने पर बीजापुर लौटे। हालांकि वंशज आज भी गांव में मौजूद हैं। धार्मिक आस्था के प्रतीक लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण राजा हरि चंद ने 1382 ई. में प्रसिद्ध मौर्य शैली में करवाया था जिसके तीन दरवाजे हैं।

राजा को संतान प्राप्ति भी मंदिर निर्माण के बाद हुई थी। महंत स्वामी राम भारती बताते हैं कि यहां दुर्लभ दक्षिणामुखी नारायण जी की मूर्ति स्थापित है जो काले पत्थर की बनी हुई है। इसमें माता लक्ष्मी भगवान नारायण की गोद में बैठी हुई हैं। अमूमन अधिकांश मूर्तियां पश्चिमोखी होती हैं। वर्तमान में मंदिर परिसर में हनुमान और नवग्रह की स्थापना भी की गई है जहां तुलादान, यज्ञ, यज्ञोपवीत और जन्मदिवस काफी शुभ माने जाते हैं। रियासत काल के दौरान खोदे गए तीन कुएं और प्राचीन बावड़ियां अब भी प्रचलन में हैं। उत्तरी छोर पर सरोवर में स्नान करके राजाओं के वंशज शिवधाम बैजनाथ और महाकालेश्वर मंदिर में प्रसाद, बिल्वपत्र और धंतूरे चढ़ाया करते थे। खुदाई के दौरान प्राचीन शिलालेख भी प्रकट हुए हैं। पौराणिक सार्थकता इसलिए भी अहम है कि यहां 2500 जनसंख्या वाले गांव के पीपल के नीचे बुजुर्गों की चोपाल अब भी सजती हैं जहां गांव के विकास के तमाम फैसले लिए जाते हैं। यह परंपरा रियासत काल के अंतिम शासक ध्रुव देव कटोच के समय से चली आ रही है। हालांकि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से गांव बंटा हुआ है लेकिन विकास के मसले पर सब एकजुट हो जाते हैं।

पंचायत प्रधान बबीता कटोच बताती हैं कि वर्तमान में गांव के तकरीबन 50 युवा भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और सैंकड़ों सेवानिवृत्त हैं। यहां जमा दो विद्यालय, आईटीआई और पीएचसी मौजूद हैं। बुजुर्ग खेमचंद कटोच, कृष्ण कटोच, हरनाम सिंह, भूरी सिंह, अशोक कटोच, ध्रुव देव, सुरेंद्र, रघुनाथ, अवतार कटोच, बेनी चंद कटोच, अर्जुन पंडित, होशियार चौधरी का कहना है कि गांववासी परंपरागत खेती के साथ चाय की खेती को तवज्जो देते हैं।

विद्यालय के प्राचार्य चंद्रपाल राणा के अनुसार विद्यालय गतिविधियों को देखते हुए उत्कृष्ठ का दर्जा दिया गया है जिसके तहत हाल ही में 50 लाख की लागत लाइब्रेरी ,लैबोरेटरी,हर्बल गार्डन, सिंथेटिक ग्राउंड और खेल मैदान से विद्यालय का कायाकल्प हुआ है। यह विद्यालय प्राइमरी से सीधा दसवीं तक स्तरोन्नत हुआ है।

इन्होंने बढ़ाया नाम
वेद भूषण अंडर सेक्रेटरी, राजेंद्र जोशी जिला आयुर्वेदिक अधिकारी, त्रिलोक चंद, हरभजन, सुनील कटोच कॉलेज प्रोफेसर, संदीप कुमार, चंद्रपाल राणा, सुरेश राणा प्राचार्य विद्यालय, राजेंद्र कुमार सदस्य आईएमएफ पद पर रहे हैं।

एक हकीकत यह भी
खेमचंद कटोच के पास 16वीं शताब्दी के नगाड़े अब भी मौजूद हैं। बताते हैं कि चांदी के आवरण के यह नगाड़े एक बार चोरी हो गए थे। जब चोर इन्हें ले जाने लगे तो यह हैरतअंगेज तौर पर अपने आप बजने लगे और उनकी आंखों की रोशनी चली गई। तब राजा के कारिंदे इन नगाड़ों को खोज कर वापस ले आए। नगाड़ों के नाम पर नगाड़बां (बावड़ी) अब भी मौजूद है।

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